

जौनपुर,18 नवंबर (Udaipur Kiran) । आज से लगभग 22 वर्ष पूर्व कानपुर से प्रारम्भ हुआ देहदान का अभियान प्रदेश के अधिकांश जिलों में अपना विस्तार करने के बाद अब जौनपुर में देहदान की अलख जगाने की तैयारी में है। इसी क्रम में देहदान जागरूकता सेमिनार का आयोजन मंगलवार को स्वशासी उमानाथ सिंह राजकीय मेडिकल कॉलेज जौनपुर में किया गया। समारोह की अध्यक्षता प्राचार्य प्रो0 आर बी कमल ने किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि कानपुर से विशेष रूप से आये देहदान अभियान प्रमुख मनोज सेंगर एवं माधवी सेंगर ने बताया कि 15 नवम्बर 2003 को तत्कालीन राज्यपाल उत्तर प्रदेश आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री के आग्रह पर कानपुर के जे० के० कालोनी जाजमऊ स्थित एक कमरे में परिवार के सात सदस्यों द्वारा देहदान संकल्प का प्रारम्भ हुआ। अभियान अब युग दधीचि देहदान अभियान के रूप में पूरे प्रदेश के दर्जनों राजकीय मेडिकल कालेजों को अब तक 308 मृत देह दान कर चुका है। इसमें एम्स रायबरेली और एम्स गोरखपुर भी शामिल हैं, अभी तक 4000 से अधिक लोगों ने देहदान संकल्प पत्र भर कर दिए हैं, किसी संकल्पकर्ता का निधन होने पर उसके मृत शरीर को पूरे सम्मान के साथ मेडिकल कॉलेज लाया जाता है यहां पर प्रार्थना, पुष्पांजलि एवं मंत्रपाठ करते हुए देह को एनाटॉमी विभाग को सौंप दिया जाता है, इसके बाद उस व्यक्ति के समस्त धार्मिक संस्कार वैदिक रीति से संस्था कानपुर में सम्पन्न कराती है।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए मनोज सेंगर ने बताया अभियान का प्रथम देहदान कानपुर देहात के डेरापुर से 21 वर्षीय बउआ दीक्षित का 20 अगस्त 2006 को हुआ था। अभियान की महासचिव माधवी सेंगर ने बताया कि देहदान में एक संकल्प पत्र भरा जाता है, एक हलफनामा और आधार की कापी लगती है, परिवार की सहमति आवश्यक है। एक फोटो भी लगेगा, 18 साल से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति फॉर्म भर सकता है।अभियान प्रमुख मनोज सेंगर ने बताया कि एच आई वी, हेपेटाइटिस बी, कैंसर, कोविड, सेप्टिसिमिया, शरीर में घाव, अप्राकृतिक मृत्यु की स्थिति में देह स्वीकार नहीं की जा सकती।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि सेंगर दम्पति ने अपना दवा व्यवसाय त्याग कर आजीवन निः सन्तान रहने का प्रण करके पूरा जीवन ही देहदान अभियान के नाम कर दिया है। भारतीय समाज में किसी की मृत्यु होने पर उसका चितारोहण और अग्निदाह न हो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, समाज की इस आस्था से सीधे टकराने वाले और प्रचलित मान्यता को विपरीत दिशा में मोड़ कर समाज की सोच को सकारात्मक परिणाम की ओर प्रेरित करना बड़ा ही कठिन काम था लेकिन सेंगर दंपति के 22 सालों के अथक प्रयासों ने वह संभव कर दिखाया है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी, अब हमें पूरा विश्वास है कि उनकी सहायता से हमें भी छात्रों के अध्ययन हेतु मृत शरीर उपलब्ध हो सकेंगे।
क्यों आवश्यक है देहदान
एनाटॉमी विभाग की विभागाध्यक्ष डाo भारती यादव ने बताया कि मानव देह की आन्तरिक संरचना समझने के लिये प्रथम वर्ष के चिकित्सा छात्रों को अध्ययन हेतु मृत देह की आवश्यकता होती है। आदर्श स्थिति में दस छात्रों पर एक देह होनी चाहिये पर कमी के चलते एक देह पर पच्चीसों छात्रों को सीखना पड़ता है इसी कमी को पूरा करने के लिए देहदान करना इस युग का सबसे बड़ा धर्म है। यहां के महार्षि दधीचि के वंशजों का आवाहन है कि वे आगे आकर अपनी देह का समर्पण मरणोपरान्त राष्ट्र हित में करें।
(Udaipur Kiran) / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव