

सूक्ष्म-स्तर के जनगणना आँकड़े स्थानीय विकास आवश्यकताओं को समझने तथा साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण में होते है अत्यंत महत्वपूर्ण
प्रयागराज, 20 नवंबर (Udaipur Kiran) । भारत की जनगणना विश्व की सबसे बड़ी प्रशासनिक गणना है, जो जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आवास, प्रवासन, साक्षरता, लिंग अनुपात और कमजोर वर्गों से संबंधित विश्वसनीय आँकड़े उपलब्ध कराती है। यह बात गुरूवार को प्रयागराज के जी.बी.पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में “समावेशी एवं सतत विकास के लिए बड़े पैमाने के जनगणना एवं सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों का महत्व” विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश जनगणना निदेशक शीतल वर्मा ने कही।
उन्होंने कहा कि नवस्थापित सेन्सस डेटा रिसर्च वर्कस्टेशन का उद्देश्य विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों, शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों और डेटा-प्रयोगकर्ताओं को सूक्ष्म-स्तरीय जनगणना माइक्रोडेटा तक सुरक्षित और सुगम पहुँच प्रदान करना है। यह सुविधा विकासोन्मुख नीतियों के निर्माण, योजनाओं के निगरानी एवं मूल्यांकन, भू-स्थानिक विश्लेषण तथा शैक्षिक एवं शोध क्षमता-वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देगी। उच्च गुणवत्ता वाले माइक्रोडेटा की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए यह वर्कस्टेशन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर डेटा-संचालित निर्णय प्रक्रिया को सुदृढ़ करेगा। सूक्ष्म-स्तर के जनगणना आँकड़े स्थानीय विकास आवश्यकताओं को समझने, लक्षित हस्तक्षेपों की पहचान करने तथा साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि इन आँकड़ों का सही उपयोग न केवल प्रदेश और देश के विकास को दिशा देता है, बल्कि शोधकर्ताओं को नई दृष्टि प्रदान करता है, जैसा कि पूर्व अनुभवों से प्रमाणित है।
देश के विभिन्न अग्रणी संस्थानों के विशेषज्ञों ने इस पहल को ‘लंबे समय से अपेक्षित उपलब्धि’ बताते हुए उन्नत शोध सहयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कदम कहा। अपने उद्घाटन संबोधन में प्रो. टी. वी. शेखर ने लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी ऑफ इंडिया पर व्याख्या दिए एवं प्रो. लक्ष्मीकांत द्विवेदी ने वर्कस्टेशन को ‘उच्च-गुणवत्ता एवं नीति-प्रासंगिक अनुसंधान के लिए एक परिवर्तनकारी संसाधन’ बताया। उन्होंने बड़े पैमाने के डेटा के महत्व, उनके संग्रह एवं विश्लेषण की तकनीकों तथा नीति-निर्माण में उनकी उपयोगिता पर विस्तृत प्रकाश डाला।
संस्थान की निदेशक डॉ. अर्चना सिंह ने कहा कि यह वर्कस्टेशन और कार्यशाला न केवल संस्था के शोध वातावरण को समृद्ध करेगी बल्कि प्रयागराज और आसपास के जनपदों के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों तथा डेटा उपयोगकर्ताओं को भी व्यापक लाभ प्रदान करेगी। उन्होंने बताया कि इससे विश्वसनीय सूक्ष्म आँकड़ों तक पहुँच सुगम होगी, शोध व प्रशिक्षण की गुणवत्ता बढ़ेगी और सबूत-आधारित नीति-निर्माण को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिलेगा।
कार्यशाला में भारत की सांख्यिकीय प्रणाली के प्रमुख डेटा स्रोतों-जनगणना, जन्म-मृत्यु पंजीकरण, जीवनांक सर्वेक्षण, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण इत्यादि पर विस्तृत चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने डेटा-आधारित शासन, सामाजिक क्षेत्र में नीति-निर्माण, तकनीकी नवाचार, भू-स्थानिक विश्लेषण तथा सार्वजनिक डेटा के जिम्मेदार उपयोग जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर व्याख्यान दिए। शोधकर्ताओं, छात्रों एवं नीति-निर्माताओं की विश्लेषणात्मक क्षमता को मजबूत करने हेतु क्षमता निर्माण पर विशेष बल दिया गया।
कार्यशाला में अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद विश्वविद्यालय; काशी हिंदू विश्वविद्यालय, गृह मंत्रालय, सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय तथा देश के अन्य प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों के विशेषज्ञों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। प्रतिभागियों ने शोधपत्र प्रस्तुत किए और तकनीकी सत्रों में सक्रिय रूप से शामिल हुए।
कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. माणिक कुमार एवं डॉ. मो. जुएल राणा ने कहा कि यह सुविधा संस्थान के अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को उल्लेखनीय रूप से सशक्त बनाएगी और क्षेत्रीय स्तर पर डेटा-उन्मुख अनुसंधान को नई गति देगी।
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(Udaipur Kiran) / रामबहादुर पाल