
जयपुर, 13 नवंबर (Udaipur Kiran) । राज्य सरकार ने प्रदेश के राजकीय चिकित्सा महाविद्यालयों एवं इनसे संबद्ध अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा प्रबंधन को और मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर की मंजूरी के बाद चिकित्सा शिक्षा विभााग ने मेडिकल काॅलेज के प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक, अतिरिक्त प्रधानाचार्य एवं संबद्ध अस्पतालों में अधीक्षकों की नियुक्ति हेतु नियमों में बदलाव करते हुए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये दिशा-निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू हो गये हैं।
चिकित्सा मंत्री खींवसर ने कहा है कि मेडिकल काॅलेज एवं इससे संबद्ध अस्पतालों में मरीज भार अत्यधिक होने के साथ ही यहां प्रशासनिक कार्यों की अधिकता रहती है और विशेष परिस्थितियों में कार्य सम्पादन किया जाता है। ऐसे में मेडिकल कॉलेजों में पूर्णकालिक रूप से दक्ष एवं कुशल प्रशासक होना आवश्यक है। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने विस्तृत विचार विमर्श के बाद प्रधानाचार्यों, अतिरिक्त प्रधानाचार्यों एवं अधीक्षकों के चयन एवं नियुक्ति के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं, इस जनहितैषी निर्णय से स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा।
चिकित्सा शिक्षा सचिव अम्बरीष कुमार ने बताया कि परिपत्र के अनुसार राजकीय चिकित्सा महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक तथा संबद्ध अस्पतालों के अधीक्षक प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे। वे अपने आचार्य या वरिष्ठ आचार्य जैसे पदीय कर्तव्यों के लिए एक चौथाई से ज्यादा समय नहीं देंगे। चयनित प्रधानाचार्य एवं अधीक्षक को विभागाध्यक्ष या यूनिट हैड बनने की अनुमति नहीं होगी। इसके लिए उन्हें आवेदन पत्र के साथ इस संबंध में घोषणा पत्र भी देना होगा। उन्हें यह भी शपथ पत्र देना होगा कि वे पीएमसी के पद पर पूर्णकालिक रूप से कार्य करेंगे।
चिकित्सा शिक्षा सचिव ने बताया कि राजकीय एवं राजमेस चिकित्सा महाविद्यालयों में प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक पद के लिए वरिष्ठ आचार्य के पद पर कार्यरत राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की गाइडलाइन के अनुसार पात्र शिक्षक ही आवेदन कर सकेंगे। यदि महाविद्यालय में पात्र चिकित्सक-शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं तो केंद्र या राज्य सरकार द्वारा संचालित अन्य चिकित्सा महाविद्यालयों में कार्यरत पात्र चिकित्सक भी आवेदन कर सकेंगे। इस पद पर नियुक्ति मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित चयन समिति द्वारा साक्षात्कार के माध्यम से की जाएगी। समिति में कार्मिक विभाग एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव तथा राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय या मारवाड़ चिकित्सा महाविद्यालय के कुलपति सदस्य होंगे। इस पद पर आवेदन के लिए अधिकतम आयु सीमा 57 वर्ष निर्धारित की गई है। प्रधानाचार्य के पद हेतु अधीक्षक या अतिरिक्त प्रधानाचार्य के पद पर 3 वर्ष का कार्य अनुभव एवं विभागाध्यक्ष के पद पर 2 वर्ष का अनुभव आवश्यक होगा।
परिपत्र के अनुसार समिति द्वारा प्रधानाचार्य पद के लिए 3 चिकित्सा अधिकारियों का पैनल बनाया जाएगा। सक्षम स्तर से पैनल के अनुमोदन के उपरांत चयनित अधिकारी को प्रधानाचार्य के पद पर पदस्थापित किया जाएगा। राज्य हित में इन चयनित प्रधानाचार्यों को अन्य मेडिकल काॅलेज में भी स्थानांतरित किया जा सकेगा। इनका कार्यकाल प्रथमतः 3 वर्ष का होगा। इनके कार्यकाल में 2 वर्ष की अभिवृद्धि प्रशासनिक विभाग के अनुमोदन उपरांत की जा सकेगी। प्रधानाचार्य द्वारा पद पर कार्य करने में असमर्थता व्यक्त करने या उस पर भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अकुशलता एवं गंभीर आरोप होने पर राज्य सरकार द्वारा संबंधित जिला कलेक्टर, संभागीय आयुक्त या अन्य सक्षम अधिकारी अथवा समिति से जांच करवाई जा सकेगी।
इसी प्रकार अधीक्षकों की नियुक्ति के लिए जारी परिपत्र के अनुसार एकल विशिष्टता युक्त शैक्षणिक चिकित्सालयों में संबंधित विशिष्टता के वरिष्ठ आचार्य को अधीक्षक नियुक्त किया जाएगा। यदि वरिष्ठ आचार्य द्वारा पद ग्रहण करने में लिखित रूप से असमर्थता व्यक्त की जाती है अथवा राज्य सरकार द्वारा उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है तो उसी संस्थान में कार्यरत अगले वरिष्ठ आचार्य को अधीक्षक नियुक्त करने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। बहुविशिष्टता वाले शैक्षणिक चिकित्सालयों में अधीक्षक की नियुक्ति चयन समिति की अनुशंसा के आधार पर की जाएगी। चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव की अध्यक्षता में गठित इस समिति में चिकित्सा शिक्षा आयुक्त, अतिरिक्त निदेशक (अस्पताल प्रशासन एवं एकेडमिक) एवं संबंधित चिकित्सा महाविद्यालय के प्रधानाचार्य सदस्य के रूप में शामिल होंगे। समिति द्वारा पात्र आवेदकों का साक्षात्कार लेकर नियुक्ति हेतु नामों का पैनल तैयार किया जाएगा, जिसमें से राज्य सरकार किसी एक चिकित्सक को अधीक्षक नियुक्त करेगी।
बहु विशिष्टता युक्त चिकित्सालयों के अधीक्षक पद पर नियुक्ति हेतु संबंधित चिकित्सा महाविद्यालय में कार्यरत विषयों के वे वरिष्ठ आचार्य या आचार्य पात्र होंगे, जो कम से कम 5 वर्ष की सेवा इन पदों पर पूर्ण कर चुके होंगे। इनके उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में जो इस योग्यता के सबसे करीब हो, का चयन किया जा सकेगा। अगर मेडिकल काॅलेज में पात्र चिकित्सक उपलब्ध नहीं होंगे तो केंद्र या राज्य सरकार के अन्य चिकित्सा महाविद्यालयों में कार्यरत पात्र चिकित्सक को आवेदन की अनुमति होगी। अधीक्षक के पद पर आवेदन करने वाले चिकित्सकों को इस पद पर पूर्णकालिक कार्य करने का शपथ पत्र देना होगा। वे अपने पदीय कर्तव्यों पर एक चैथाई से अधिक समय व्यतीत नहीं कर सकेंगे तथा एचओडी एवं यूनिट हैड के साथ ही निजी प्रैक्टिस भी नहीं कर सकेंगे। इनकी नियुक्ति प्रथमतः 3 वर्ष के लिए की जाएगी, जिसे प्रशासनिक विभाग के अनुमोदन से 2 वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा।
वर्तमान में राजकीय चिकित्सा महाविद्यालयों में अतिरिक्त प्रधानाचार्य के पदों एवं कार्यों के संबंध में एकरूपता नहीं है। इसे देखते हुए अब यह निर्धारित किया गया है कि किसी भी मेडिकल कॉलेज में 5 से अधिक अतिरिक्त प्रधानाचार्य नहीं होंगे। राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय में विभिन्न कार्यों के कुशल संचालन हेतु इनके दायित्व भी निर्धारित किए गए हैं। ये एकेडमिक, रिसर्च एवं फैकल्टी अफेयर्स, स्टूडेंट अफेयर्स, प्रशासन तथा क्लिनिकल एवं हॉस्पिटल सेवाओं से संबंधित दायित्व संभालेंगे। सभी अतिरिक्त प्रधानाचार्य, प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक के निर्देशन में कार्य करेंगे तथा इन पदों पर नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर वरिष्ठ आचार्यों में से की जाएगी। इनकी नियुक्ति प्रथमतः 3 वर्षों के लिए की जाएगी। यदि किसी अतिरिक्त प्रधानाचार्य की सेवाएं असंतोषजनक पाई जाती हैं तो उसे समय से पहले भी हटाया जा सकेगा। तीन साल की सेवा संतोषजनक पूर्ण करने वाले अधिकारी को सक्षम स्वीकृति उपरांत एक-एक वर्ष की अवधि के लिए तीन बार पुनर्नियुक्त किया जा सकेगा।
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(Udaipur Kiran)