

भीलवाड़ा, 9 नवंबर (Udaipur Kiran) । भीलवाड़ा जिले में अंधविश्वास के चलते एक नौ माह के मासूम की दर्दनाक मौत हो गई। मामूली सर्दी-जुकाम और सांस लेने में तकलीफ पर इलाज के बजाय परिजन बच्चे को गांव के भोपा (झाड़-फूंक करने वाले) के पास ले गए। भोपा ने इलाज के नाम पर मासूम को गर्म सरिए से दाग दिया। इससे बच्चे की हालत और बिगड़ गई और आखिरकार तीन दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद उसने दम तोड़ दिया। यह दर्दनाक घटना सदर थाना क्षेत्र के इंरास गांव की है।
थाना प्रभारी कैलाश बिश्नोई ने बताया कि इंरास गांव निवासी देवा बागरिया का 9 महीने का बेटा गोविंद बीमार हो गया था। उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। मंगलवार दोपहर करीब तीन बजे परिजन उसे गांव के ही भोपा के पास ले गए। भोपा ने झाड़-फूंक के साथ बच्चे को गर्म सरिए से शरीर पर कई जगह दाग दिया। भोपा का दावा था कि इससे बच्चा जल्दी ठीक हो जाएगा, लेकिन इसके उलट उसकी तबीयत और बिगड़ गई। परिजन बच्चे को घर ले आए, लेकिन धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ती चली गई। गुरुवार को जब बच्चा बेहोश जैसा हो गया तो घबराए परिजन उसे महात्मा गांधी अस्पताल, भीलवाड़ा लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने बच्चे की गंभीर हालत देखते हुए तुरंत वेंटिलेटर पर रखा और इलाज शुरू किया। तीन दिन तक जिंदगी और मौत के बीच झूलते इस मासूम ने शनिवार मध्य रात दम तोड़ दिया।
अस्पताल प्रशासन ने मौत की सूचना हॉस्पिटल चौकी को दी। इसके बाद सदर थाना पुलिस मौके पर पहुंची। रविवार सुबह पोस्टमॉर्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया। पुलिस ने भोपा के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। थानाधिकारी कैलाश बिश्नोई ने बताया कि भोपा की करतूत ने एक मासूम की जान ले ली है। अंधविश्वास के नाम पर इस तरह की घटनाएं बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं। आरोपी भोपा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
इस मामले में महात्मा गांधी अस्पताल के पीएमओ डॉ. अरुण गौड़ ने बताया कि बच्चे को निमोनिया था। परिजनों ने भोपा के कहने पर उसे गर्म सरिए से दाग दिया, जिससे संक्रमण बढ़ गया। डॉ. गौड़ ने बताया कि डाम लगाने से बीमारी ठीक नहीं होती, बल्कि शरीर में इन्फेक्शन फैल जाता है। बच्चे को गंभीर इंट्रा ग्रेन्यूलर इन्फेक्शन हो गया था, जिससे उसकी हालत बेहद नाजुक हो गई थी। डॉ. गौड़ ने आगे कहा कि डाम लगाने से मरीज शॉक में जा सकता है, उसके शरीर के अंदरूनी हिस्सों में ब्लीडिंग हो सकती है फेफड़ों या दिमाग तक असर पहुंच सकता है। उन्होंने अपील की कि परिजन अंधविश्वास पर भरोसा करने के बजाय बच्चों को समय पर अस्पताल लेकर जाएं, ताकि उनकी जान बचाई जा सके।
उल्लेखनीय है कि यह घटना एक बार फिर समाज के सामने सवाल खड़ा करती है कि शिक्षा और जागरूकता के बावजूद ग्रामीण अंचलों में अंधविश्वास किस हद तक लोगों की सोच पर हावी है। इलाज की जगह झाड़-फूंक और टोने-टोटके में विश्वास रखना न सिर्फ खतरनाक है, बल्कि जानलेवा भी साबित हो सकता है।
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(Udaipur Kiran) / मूलचंद