
जयपुर, 8 नवंबर (Udaipur Kiran) । ‘अनहद’ की सुरमयी संध्या उस क्षण अनंत हो उठी जब पंडित उल्हास कशालकर के स्वरों ने रागों में प्राण फूँक दिए। उनके गायन में ग्वालियर की गहराई, जयपुर की विस्तारशीलता और आगरा की दृढ़ता एक साथ झिलमिलाई। स्वर कभी ध्यान बनकर ठहरते, कभी भावना बनकर बहते — और श्रोताओं को ऐसी आत्मिक अनुभूति देते चले गए जैसे संगीत स्वयं साधना बन गया हो।
स्पिकमैके और राजस्थान पर्यटन विभाग राजस्थान सरकार के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार शाम राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित “अनहद” श्रृंखला की तीसरी कड़ी में पंडित कशालकर ने अपनी विलक्षण प्रस्तुति से रागों की रस-धारा प्रवाहित कर दी। सायंकालीन और रात्रि के प्रथम प्रहर के रागों में उन्होंने जिस सौंदर्य का संचार किया, उसने वातावरण को माधुर्य और ध्यानमग्नता से भर दिया।
पंडित कशालकर के गायन में परंपरा की गरिमा और नवीनता की कोमल आभा एक साथ झलकी। रागों के विस्तार में जहाँ तान की दृढ़ता थी, वहीं भाव की सूक्ष्मता और स्वर की कोमलता का अद्भुत संगम दिखाई दिया। ग्वालियर घराने की शास्त्रीयता, जयपुर की जटिल रचनात्मकता और आगरा की ऊर्जा उनके स्वरों में सहजता से घुली रही।
इस अवसर पर तबले पर पंडित विनोद लेले और हारमोनियम पर विनय मिश्रा ने संगत कर प्रस्तुति को और सजीव बना दिया।
स्पिकमैके की प्रवक्ता अनु चंडोक और हिमानी खींची ने बताया कि इस संध्या में मूलतः मुंबई की प्रख्यात गायिका डॉ. अश्विनी भिड़े-देशपांडे की प्रस्तुति निर्धारित थी, किंतु पारिवारिक आकस्मिक स्थिति के कारण वे सम्मिलित नहीं हो सकीं।
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(Udaipur Kiran)