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ग्यारह हजार के भुगतान के खिलाफ रेलवे की याचिका

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–हाईकोर्ट ने पूछा, छोटी सी रकम के खिलाफ क्यों दाखिल की याचिका ?–17 साल की मुकदमेबाजी में रेलवे ने अब तक कितना खर्च किया ?

प्रयागराज, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 साल तक मुकदमेबाजी के बाद वादी को मुआवजा व वाद खर्च के तौर पर 11 हजार रुपये के भुगतान के आदेश के खिलाफ उत्तर मध्य रेलवे सूबेदारगंज प्रयागराज द्वारा याचिका करने पर आश्चर्य जताया है। कोर्ट ने कहा कि रेलवे ने अवार्ड से कई गुना अधिक मुकदमा लड़ने में खर्च कर दिया है। वकीलों की फीस व खर्च मुआवजे से कहीं अधिक दिया गया। साथ ही नई दिल्ली स्थित रेलवे की लीगल सेल के वरिष्ठ अधिकारी से पूछा है कि छोटी सी रकम (11 हजार रुपये मुआवजा व खर्च) के भुगतान के राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश के खिलाफ किन परिस्थितियों के कारण उत्तर मध्य रेलवे प्रयागराज द्वारा हाईकोर्ट में याचिका की गई।

यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने भारत संघ व अन्य बनाम विजय कुमार मालवीय की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत राय सहारा केस में साफ कहा है कि व्यर्थ व निरर्थक मुकदमे भारतीय न्याय व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। इस कारण महत्वपूर्ण मुकदमों के निस्तारण के लिए न्यायालय के पास समय नहीं बचता और दूसरी तरफ निर्दोष परेशान होता है। ऐसे गैर जिम्मेदाराना कार्यवाही की कोर्ट ने अक्सर निंदा की है।

कोर्ट ने जिला उपभोक्ता फोरम से हाईकोर्ट तक मुकदमेबाजी में रेलवे व केंद्र सरकार द्वारा किए गए अब तक के कुल खर्च का ब्योरा मांगा है और कहा कि क्यों न उस अधिकारी से खर्च की वसूली की जाए, जिसकी राय से हाईकोर्ट में छोटे से मामले को लेकर याचिका दाखिल की गई है। विजय कुमार मालवीय ने ट्रेन लेट होने से माल की आपूर्ति समय से न होने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए वर्ष 2008 में जिला उपभोक्ता फोरम में वाद दाखिल किया। फोरम ने 25 हजार रुपये मुआवजा व दो हजार रुपये वाद खर्च का आदेश दिया। केंद्र सरकार द्वारा इस आदेश को राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील के माध्यम से चुनौती दी गई। कहा गया कि नियम 115 के अनुसार कोहरे के कारण ट्रेन लेट होती है और सामान की आपूर्ति समय से नहीं हो पाती तो इसके लिए रेलवे को लापरवाही का जिम्मेदार नहीं माना जाएगा। इस नियम पर विचार नहीं किया गया है। राज्य आयोग ने मुआवजा 10 हजार रुपये व खर्च एक हजार रुपये कुल 11 हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ रेलवे की पुनरीक्षण अर्जी राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने खारिज कर दी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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