वाराणसी, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । बरेका (बनारस रेल इंजन कारखाना) के महाप्रबंधक समेत नौ अधिकारियों के खिलाफ दाखिल एक परिवाद को सीजेएम (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) मनीष कुमार द्वितीय की अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई के पश्चात खारिज कर दिया। अदालत ने पोषणीयता के बिंदु पर सुनवाई करते हुए बरेका के अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तर्कों से सहमति जताई।
ककरमत्ता निवासी विजय मौर्य ने 19 मई को अदालत में परिवाद दाखिल किया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि 28 फरवरी की रात लगभग 11:30 बजे बरेका महाप्रबंधक, आरपीएफ इंस्पेक्टर, सुरक्षा आयुक्त समेत 9 अधिकारी आदर्श ग्राम सभा ककरमत्ता के उत्तरी गेट पर आए और वहां लगे गेट को जेसीबी से गिरा दिया। आरोप के अनुसार, इसके बाद ट्रैक्टर से बोल्डर लाकर गेट को बंद करने का प्रयास किया गया। ग्रामीणों के विरोध पर कथित रूप से अधिकारियों ने गाली-गलौज की और लाठीचार्ज किया।
परिवादी का आरोप है कि उन्हें बरेका परिसर के अंदर ले जाकर मारपीट की गई और जान से मारने की धमकी दी गई। घटना की सूचना एक मार्च को मंडुवाडीह थाने में दी गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने पर पुलिस कमिश्नर को 11 मार्च को रजिस्टर्ड डाक से सूचना भेजी गई। इसके बाद यह परिवाद अदालत में दाखिल किया गया।
बरेका के स्थायी अधिवक्ता जगत नारायण द्विवेदी ने अदालत को सूचित किया कि इसी मामले से जुड़ी एक जनहित याचिका वादी द्वारा हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसे 21 मार्च 2025 को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि बरेका अधिकारियों द्वारा कोई त्रुटि या लापरवाही नहीं की गई है। इसके अतिरिक्त, अधिवक्ता ने यह भी बताया कि वादी द्वारा इसी मामले में एक दीवानी वाद (सिविल सूट) भी दाखिल किया गया है, जो वर्तमान में विचाराधीन है। साथ ही, उन्होंने यह भी तर्क दिया कि किसी भी लोकसेवक के विरुद्ध अभियोजन की अनुमति प्राप्त किए बिना धारा 197 सीआरपीसी या धारा 218 बीएनएसएस के तहत आपराधिक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती।
—अदालत का निर्णय
अदालत ने अधिवक्ता के तर्कों से सहमति व्यक्त करते हुए केवल पोषणीयता के आधार पर परिवाद को खारिज कर दिया।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
