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पश्चिमी घाट में मिली लाइकेन की नई प्रजाति, प्राचीन सहजीवन का करती है खुलासा

पश्चिमी घाट में पाईं गई लाइकेन की नई प्रजातियां

नई दिल्ली, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल ने जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध पश्चिमी घाट से लाइकेन की एक पूर्व अज्ञात प्रजाति की खोज की है। एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका नाम की लाइकेन की यह प्रजाति सहजीवन, विकास और लचीलेपन की ओर इशारा करती है। एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका भारत में पाई जाने वाली इस प्रजाति की 53वीं और अकेले पश्चिमी घाट में पाई जाने वाली 22वीं प्रजाति बन गई है। यह अध्ययन भारतीय लाइकेन विविधता, विशेष रूप से जैव विविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान, पुणे स्थित एमएसीएस-अघारकर अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए अध्ययन में नई पहचानी गई प्रजाति, एक क्रस्टोज़ लाइकेन है, जिसमें आकर्षक इफ्यूज़ सोरेडिया और तुलनात्मक रूप से दुर्लभ रासायनिक गुण हैं। इससे इसके शैवालीय साथी, एक ट्रेंटेपोहलिया प्रजाति का भी पता चला, जिससे उष्णकटिबंधीय लाइकेन में प्रकाश-जैविक विविधता की विरल लेकिन बढ़ती समझ में वृद्धि हुई।

उल्लेखनीय है कि लाइकेन एक विशेष प्रकार की वनस्पति है जो कवक (फंगस) और शैवाल (एलगी) के सहजीवी संबंध से बनती है। यह विभिन्न प्रकार की सतहों जैसे चट्टानें, पेड़ की छाल और मिट्टी पर पाया जाता है। लाइकेन अपना भोजन स्वयं तैयार करने में सक्षम स्वपोषी जीव है। लाइकेन केवल एक जीव नहीं बल्कि दो (कभी-कभी ज़्यादा) जीव होते हैं जो घनिष्ठ सहजीवन में रहते हैं। लाइकेन पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, मिट्टी बनाते हैं, कीड़ों को भोजन देते हैं और प्रकृति के जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं।

अध्ययन दल में शामिल शोधकर्ता का कहना है कि भारत में खोजी गई यह प्रजाति, आणविक डेटा द्वारा समर्थित देश की पहली एलोग्राफा है। यह लाइकेन-शैवाल सहजीवन पर भी प्रकाश डालता है, जो स्थानीय रूप से अनुकूलित फोटोबायोन्ट की अवधारणा को मजबूत करता है।

एंसिल पीए, राजेश कुमार केसी, श्रुति ओपी और भारती ओ. शर्मा के नेतृत्व में किया गया यह अध्ययन, सहजीवी जीवन रूपों और उनकी छिपी आनुवंशिक जटिलता को समझने की दिशा में बड़ा कदम है। यह भारत में लाइकेन की बढ़ती सूची में योगदान देता है। यह प्रकाशन अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (एएनआरएफ) द्वारा प्रायोजित एक शोध परियोजना के माध्यम से जारी हुआ है।

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(Udaipur Kiran) / विजयालक्ष्मी

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