

— अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने की थी यहां शिवलिंग की स्थापना
औरैया, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । तीर्थो का राजा कहे जाने वाले बटेश्वर से लेकर पंचनद तक क्षेत्र इष्ट पथ कहलाता है। क्योंकि इस क्षेत्र में सबसे अधिक प्राचीन शिवालय हैं। इन्हीं प्राचीन शिवालयों में शामिल है महाभारत कालीन का प्राचीन भारेश्वर महादेव मंदिर। जिसमें इटावा, औरैया जनपद ही नहीं बल्कि दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना अज्ञातवास के समय पांडवों द्वारा की गई थी।
हर वर्ष महाशिवरात्रि और सावन माह में यहां पर आस्था का सैलाब उमड़ता है और कावड़ मेला लगता है। आसपास का क्षेत्र महाभारत के इतिहास से जुड़ा हुआ है। भारेश्वर मंदिर जिले में ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश व राजस्थान के श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र है। यमुना व चंबल नदी किनारे बसे भरेह गांव के निकट यह प्राचीन शिवालय बना हुआ है। यहीं से पंचनद के पावन संगम की शुरुआत होती है। कालेश्वर मंदिर पर यमुना व चंबल के अलावा सिंध, पहुज एवं क्वारी नदी भी मिलती है। जिस कारण यह क्षेत्र पंचनद धाम के नाम से जाना जाता है।
भारेश्वर मंदिर के महंत चंबल गिरि ने बताया कि भारेश्वर मंदिर के निर्माण के बारे में लोग बताते हैं कि राजस्थान के व्यापारी ने मनोकामना पूर्ण होने के बाद यह मंदिर बनवाया था। यह बात उस समय की है जब जलमार्ग के माध्यम से ही व्यापारी अपना माल इधर से उधर पहुंचाते थे। बताया जाता है उस समय राजस्थान का एक व्यापारी जलमार्ग से माल लेकर जा रहा था। तभी उसकी नाव यमुना और चंबल नदी के भंवर में फंस गई थी। संकट की स्थिति में भी उस व्यापारी ने भारेश्वर महादेव को याद किया तो उनकी नाव सकुशल बाहर निकल आई। इसके बाद व्यापारी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। सावन के पहले सोमवार को सुबह 7 बजे से इस मंदिर पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली।
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(Udaipur Kiran) कुमार
