शिमला, 30 अगस्त (Udaipur Kiran) । स्वास्थ्य की दुनिया में पारंपरिक उपचार और घरेलू नुस्खे फिर से अपनी जगह बना रहे हैं। ऐसा ही एक अनोखा उदाहरण है बांस की कलियों का है जो न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि थायरॉइड जैसी समस्याओं के उपचार में भी कारगर साबित हो रही हैं। वल्लभ महाविद्यालय में वनस्पति विज्ञान की प्राध्यापक डा. तारा सेन का कहना है कि बांस के पौधे की कोंपलें, जिन्हें आमतौर पर बांस की कोंपल, शूट्स या कलियां कहा जाता है। जिसे स्थानीय बोली में मानुके नाम से जानी जाती हैं। इन्हें सलाद, सूप, अचार और विभिन्न व्यंजनों में शामिल करके न केवल खाने का स्वाद बढ़ाया जा सकता है, बल्कि स्वास्थ्य को भी मजबूती प्रदान की जा सकती है।
डा. तारा सेन का कहना है कि बांस का अचार, जो न केवल स्वाद में बेहतरीन होता है। बल्कि थायरॉइड जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि हाल ही में एक स्थानीय सब्जी विक्रेता मीना कुमारी ने थायरॉइड की समस्या से छुटकारा पाने में बांस की कलियों की महत्ता के अपने अनुभव साझा किए।
मीना कुमारी ने बताया कि वह लंबे समय से थायरॉइड की समस्या से जूझ रही थीं और डॉक्टर ने उन्हें जीवनभर दवाइयां लेने की सलाह दी थी। लेकिन जब उन्होंने पारंपरिक ज्ञान के आधार पर बांस का अचार बनाकर सेवन करना शुरू किया, तो उन्हें बहुत अच्छे परिणाम मिले और उनकी दवाइयां भी बंद हो गई। उन्होंने अपना अनुभव अपने कई ग्राहकों से साझा किया और वे बताती हैं कि उन्हें भी थायरॉइड की समस्या से राहत मिली। वे बीते बीस वर्षों से वह बांस का अचार बना रही हैं और ग्राहकों की मांग पर बांस उपलब्ध कराती हैं। अब कई लोग इसे थायरॉइड के उपचार के लिए औषधीय आहार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। डा. तारा ने बताया कि थायरॉइड के उपचार में बांस की कलियों की प्रभावशीलता का वैज्ञानिक आधार।
उन्होंने बताया कि बांस की कलियां स्वादिष्ट होने के साथ दृसाथ पोषण के मामले में भी बेहद फायदेमंद मानी जाती हैं। ये कम कैलोरी वाली और फाइबर से भरपूर होती हैं, जो पाचन स्वास्थ्य को सुधारने और वजन नियंत्रण में भी मददगार हैं। बांस की कोंपलों में विटामिन 6, विटामिन , पोटेशियम, कैल्शियम और आयरन जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। जो हृदय स्वास्थ्य, हड्डियों की मजबूती, ब्लड शुगर और रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक हैं। इसके अलावा इनमें एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं। जो शरीर में सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करते हैं।
आयोडीन की कमी और थायरॉइड की समस्या
थायरॉइड की समस्याओं का मुख्य कारण शरीर में आयोडीन की कमी होती है, जो थायरॉइड हार्मोन के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बांस की कोंपलों में आयोडीन की मौजूदगी, थायरॉइड ग्रंथि के कार्य को नियमित रखने में सहायक होती है। इन कोंपलों में जिंक और सेलेनियम जैसे खनिज भी पाए जाते हैं, जो थायरॉइड हार्मोन के संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। सेलेनियम थायरॉइड हार्मोन को सक्रिय रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को सुगम बनाता है, जबकि जिंक थायरॉइड ग्रंथि की कार्यप्रणाली को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बांस की कोंपलों में मौजूद प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण थायरॉइड ग्रंथि की सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। जिससे थायरॉइडाइटिस जैसी समस्याओं में राहत मिल सकती है। इसके अलावाए बांस की कोंपलों में फ्लेवोनोइड्स और फाइटोकेमिकल्स जैसे एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो शरीर में मुक्त कणों को निष्क्रिय करके थायरॉइड ग्रंथि की सुरक्षा करते हैं और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करते हैं। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस थायरॉइड समस्याओं का एक प्रमुख कारण हो सकता है। बांस की कोंपलें वसा में कम और फाइबर में उच्च होती हैंए जो पाचन तंत्र को सुधारती हैं और शरीर से विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती हैं, जिससे थायरॉइड की समस्याओं में सुधार हो सकता है।
पारंपरिक ज्ञान का पुनर्जीवन
स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक कदम मीना कुमारी का अनुभव दिखाता है कि पारंपरिक जड़ी-बूटियों और पौधों का ज्ञान हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना मूल्यवान है। बांस की कोंपल जैसी साधारण चीज़ों में भी बड़ा स्वास्थ्य लाभ छिपा हो सकता है, जो कि आधुनिक दवाइयों का पूरक बन सकता है। इन प्राकृतिक उपचारों को अपनाकर हम पुरानी बीमारियों से निजात पा सकते हैं और अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ा सकते हैं।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा